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दीये से घर को जगमगाने के लिए कुम्हारों की चाक ने पकड़ी रफ्तार।

खोरीबाड़ी : दीपावली में करीब आठ दिनों का ही समय शेष रह गए हैं। इसको लेकर कुम्हारों के चाक तेजी से घूमने लगे हैं। बड़ी संख्या में मिट्टी के दीये तैयार होने के बाद कुम्हार दीये को नेपाल, बिहार आदि जगहों में भेजना शुरू भी कर दिया है। इस बार कुम्हारों में ज्यादा बिक्री होने की उम्मीद जगी है। खुशहाली में चार चांद लगाने के लिए तैयार है और  पटाखे पर भी पूरी तरह रोक लगाई गई है। 

दीपावली आगामी 12 नवंबर रविवार को मनाई जाएगी। इस अवसर पर दीपों से अपने घर-आंगन को सजाने की तैयारी लोगों ने शुरू कर दी है। बदलते ट्रेंड के साथ लोग डिजाइनर दीये भी खूब पसंद करने लगे हैं। वहीं चाइनीज दीयों के साथ मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ रही है। देश में दीपावली को बड़े पर्व के रूप में मान्यता दी जाती है। दीपावली के समय कुम्हारों के चेहरे खिल जाते हैं 

क्योंकि दीया, कुल्लड़ और मिट्टी की घरिया और खेल-खिलौने बनाने का काम विश्वकर्मा पूजा से कुम्हारों के बीच शुरू हो जाता है। दीवाली कुम्हारों के लिए इसलिए खास  रही है । प्राचीन संस्कृति के लिहाज से मिट्टी के दीपकों का ही दीपावली में महत्व होता है। इसलिए दिवाली में मिट्टी के दीये व खेल-खिलौनों की डिमांड बढ़ जाती है।  विश्वकर्मा पूजा से अब तक हजारों की संख्या में दीपक बनाकर बाजार के व्यवसायी के पास पहुंच रही है।साथ ही बड़ी संख्या में दीपक बनाकर पकाने की प्रक्रिया तेजी से की जा रही है।


दीपक बनाने को चाक ने पकड़ी रफ्तार


दीपावली पर धन लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हारों के चाक ने रफ्तार पकड़ ली है। बतासी के कुम्हार रवींद्र पाल चौधरी बताया उन्हें इस बार अच्छी बिक्री की उम्मीद है। मिट्टी के दीपक, मटकी आदि बनाने के लिए उनकी मां और पत्नी के साथ उनके बच्चे भी हाथ बंटा रहे हैं। कोई मिट्टी गूंथने में लगा है तो किसी के हाथ चाक पर मिट्टी के बर्तनों को आकार दे रहे हैं।


बिक्री अधिक होने की उम्मीद


बतासी के शुकारुजोत स्थित पालपाड़ा निवासी कुम्हार आशु पाल व सूचित पाल चौधरी बताते हैं कि लोग चाइना के बने रंग बिरंगे लाइटें खरीददारी कर रहे हैं ।फिर भी उम्मीद है कि ज्यादा दीपक की बिक्री होगी पिछले साल करीब 35 हजार दीपक व मिट्टी के अन्य सामग्री बेची थी। इस बार उम्मीद है कि 50हजार से 60 हजार तक दीपकों की बिक्री होगी।



कुम्हारों को ईंधन पड़ता है महंगा


मिट्टी चाक पर चढऩे के बाद एक रूप दे देते हैं पर उसको पक्का करने के लिए मिट्टी को पकाया जाता है। पहले ईंधन इतना महंगा नहीं था पर अब ईंधन ने भी कुम्हारों का पसीने छुड़ा देता है। कुम्हारों को एक पल की भी फुर्सत नहीं मिल पाती है। इसलिए अधिकांश कुम्हार मिट्टी के चूल्हा का उपयोग कर रहे हैं। गणेश लक्ष्मी की मूर्तियों से लेकर दीए तक की मांग चल रही है।


60-70 रुपये सैकडों बिकते हैं दीये


कुम्हार बिक्री के लिए दीये की अलग-अलग वैरायटी बनाने लगे हैं। कुम्हारों ने बताया कि 60 -70 रुपये सैकड़ा में दीये बेचे जाते हैं लेकिन दीया बनाना ही परेशानी का सबब नहीं बल्कि बिक्री करने में भी काफी दिक्कतें होती है। धनतेरस से लेकर दीपावली के दिन तक दीये की बिक्री करते हैं। 

ऐसे में बाजार में जिस किसी भी दुकान के सामने फुटपाथ पर दीये की बिक्री करते हैं, उसका किराया देना पड़ता है। मिट्टी लाने व दीये बनाने से लेकर पकाने में जो खर्च होता है। उसके हिसाब से लाभ नहीं हो पाता। कहा कि कुम्हारों को सरकारी मदद दी जानी चाहिए जिससे मिट्टी गढऩे की कला बची रहे।


बोले युवा मिट्टी की दीपक ही जलाएंगे


प्राचीन संस्कृति के लिहाज से मिट्टी के दीपकों का ही दीपावली में महत्व होता है। इसे बच्चे व युवा खूब अच्छे से जान रहे हैं। यही वजह है कि अब चाइना के उत्पादों को छोड़कर देशी दीपकों की मांग बढ़ रही है। युवा पप्पू कुमार , आकाश कुमार सिंह, उत्तम सिंह , प्रह्लाद प्रसाद, गोपाल आदि कहते हैं कि वे कुम्हारों से बने मिट्टी की दीपक ही जलाएंगे। साथ ही अन्य लोगों को जागरूक भी कर रहे हैं।

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