भारत : पूरी दुनिया को लग रहा था कि अमेरिका और उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चीन को घुटनों पर ले आएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ड्रैगन यानी चीन घुटनों पर आया तो जरूर, मगर यह काम अमेरिका ने नहीं,
बल्कि भारत ने किया है। टैरिफ वॉर का फायदा उठाते हुए भारत ने चीनी कंपनियों को निवेश के लिए उन तमाम शर्तों को मानने के लिए मना लिया है।
जिन्हें वे पहले स्वीकार करने से इनकार कर रही थीं। मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों के अनुसार, शंघाई हाइली ग्रुप और हायर जैसी चीनी कंपनियाँ अब भारत में अपने विस्तार के लिए भारत सरकार की शर्तों को मानने को तैयार हो गई हैं।
इन शर्तों में प्रमुख शर्त यह है कि ज्वाइंट वेंचर में उनकी हिस्सेदारी अल्पमत (माइनॉरिटी स्टेक) में होगी जिसे पहले ये कंपनियाँ स्वीकार करने को तैयार नहीं थीं।
लेकिन अमेरिका द्वारा बढ़ाए गए टैरिफ के चलते अब उन्हें भारत के साथ समझौता करना पड़ रहा है। सूत्रों ने बताया कि यदि चीनी कंपनियों को अमेरिकी बाजार से बाहर कर दिया जाता है।
तो भारत उनके लिए एक महत्वपूर्ण बाजार साबित हो सकता है। वर्ष 2020 में सीमा पर हिंसा भड़कने के बाद भारत ने चीनी निवेश के प्रति सख्त रवैया अपना लिया था।
जानकारी के अनुसार, चीन की प्रमुख कंप्रेसर निर्माता कंपनियों में से एक शंघाई हाइली ने टाटा समूह की वोल्टास के साथ मैन्युफैक्चरिंग ज्वाइंट वेंचर को लेकर बातचीत फिर से शुरू कर दी है और अब वह अल्पमत हिस्सेदारी के लिए भी तैयार हो गई है।
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